डेढ़ महीने पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर से 17 वर्षीय छात्र आदित्य सेठ कोटा आया था. मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी के लिए उसने विद्यापीठ कोचिंग संस्थान में एडमिशन लिया था. इसी मंगलवार 27 जून को आदित्य ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मैं अपनी इच्छा से यह कदम उठा रहा हूं.
भारत के कोचिंग हब कोटा में आत्महत्याओं का सिलसिला लगातार जारी है. कोटा में मई और जून में 9 छात्रों ने आत्महत्या की. वहीं इस साल जनवरी से अब तक की संख्या देखें तो अब 16 छात्रों ने आत्मघाती कदम उठाया है. इंडिया टुडे ने राजस्थान के कोटा में इस चौंकाने वाली बड़ी संख्या को देखते हुए आत्महत्याओं के पीछे के कारणों पर नजर डालने की कोशिश की. पढ़ें ग्राउंड रिपोर्ट...
डेढ़ महीने पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर से 17 वर्षीय छात्र आदित्य सेठ कोटा आया था. मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट की तैयारी के लिए उसने विद्यापीठ कोचिंग संस्थान में एडमिशन लिया था. इसी मंगलवार 27 जून को आदित्य ने आत्महत्या कर ली और अपने पीछे एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्होंने अपनी इच्छा से यह कदम उठाया है.
आदित्य के पिता सोब नाथ इस घटना से स्तब्ध हैं. वो कहते हैं कि "हम लगातार अपने बच्चे के संपर्क में थे लेकिन उसने कभी ऐसी कोई बात नहीं बताई कि वह तनाव की स्थिति में है."
17 वर्षीय छात्र आदित्य सेठ
आदित्य की ही तरह उदयपुर के सलूंबर निवासी 18 वर्षीय मेहुल वैष्णव भी दो माह पहले कोटा आया था. मेहुल ने भी मंगलवार को ही आत्महत्या कर ली. हालांकि मेहुल कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा. सुसाइड करने वालों के नाम भले ही अलग हैं, लेकिन इनके अंजाम एक जैसे हैं.
18 वर्षीय मेहुल वैष्णव
छात्र बोले, कंपटीशन ज्यादा, प्रेशर और ज्यादा
कुछ महीने पहले झारखंड से राजस्थान के कोटा आईं 16 साल की सौम्या कुमारी कहती हैं कि झारखंड में दो से चार घंटे पढ़ाई कर स्कूल में टॉपर बन गई थी. यहां कोटा में रोजाना 6 से 8 घंटे पढ़ाई के बावजूद मैं टॉप 20 स्टूडेंट्स में शामिल नहीं हो पा रही हूं. इससे साबित होता है कि यहां कंपटीशन काफी टफ है.
आईआईटी जेईई की तैयारी कर रही सौम्या कुमारी ने इंडिया टुडे से बात करते हुए कहा कि कभी-कभी, जो छात्र बाहर से आते हैं, उन्हें साथियों के दबाव, माता-पिता की अपेक्षाओं का सामना करना मुश्किल होता है. उनकी ही तरह, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों से कोटा पहुंचे सैकड़ों छात्र माता-पिता की अपेक्षाओं, साथियों के बढ़ते दबाव, बड़े भारी पाठ्यक्रम और पाठ्यक्रम में भारी अंतर के कारण उन पर पड़ने वाले अत्यधिक दबाव से बोझ महसूस करते हैं.कोटा की शिक्षण पद्धति का पता उन्हें कोटा पहुंचने पर लगता है.
आईआईटी जेईई की तैयारी कर रही इशिता गोयल ने इंडिया टुडे से कहा कि हर जगह के माहौल में अंतर होता है और कभी-कभी छात्र तालमेल नहीं बिठा पाते.
राजस्थान का कोटा जिला प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने में तेजी से रैंक में ऊपर आया है. इस हिस्से की पूरी अर्थव्यवस्था अब कोचिंग पारिस्थितिकी तंत्र के इर्द-गिर्द घूमती है जो यहां विकसित हुआ है. लेकिन इसके साथ ही राज्य की आत्मघाती राजधानी होने का कलंक भी लग गया है. इंडिया टुडे ने कोटा में हुई आत्महत्याओं की संख्या के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग के इस केंद्र ग्राउंड जीरो का दौरा किया.
डीएम ने कहा, आत्महत्या के मामलों के लिए माता-पिता दोषी
कोटा के जिला कलेक्टर ओपी बुनकर ने इंडिया टुडे से कहा कि यह कोटा में आत्महत्या की सामान्य दर है. कोटा में आत्महत्या के मामलों के लिए माता-पिता दोषी हैं कोटा ने देश का कोचिंग हब होने का तमगा हासिल कर लिया है. यह रातोंरात नहीं हुआ है. कुछ दशक पहले, कोटा एक औद्योगिक शहर के रूप में जाना जाता था जहां बिजली के उपकरणों, कपड़ों आदि से संबंधित विभिन्न लघु उद्योग स्थापित किए गए थे. लेकिन धीरे-धीरे, ये उद्योग पीछे चले गए क्योंकि जिला एक कोचिंग हब के रूप में में विकसित होने लगा.
कोटा से छात्रों का बड़ा जत्था टॉप करके आईआईटी, एनआईटी, एम्स आदि सहित विभिन्न इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में पहुंचता है. विभिन्न राज्यों में शैक्षिक प्रणालियों में मौजूद भारी खामियां, कुछ राज्यों में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता अलग है. इसके कारण प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में एक्सीलेंस प्राप्त करने में सक्षम होने के लिए छात्रों को जरूरी स्किल सेट करनी होती है. इससे कुछ राज्यों के छात्र पर अलग दबाव होता है
माता-पिता कर्ज लेकर पढ़ने भेजते हैं...
यूपी, बिहार सहित विभिन्न हिस्सों से आने वाले इन छात्रों में से कुछ जानते हैं कि उनके माता-पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए कर्ज लिया है या अपनी संपत्ति गिरवी रखी है. ये चीजें भी कई बार अतिरिक्त दबाव डालती हैं. इंडिया टुडे ने जिन कुछ छात्रों से बात की, उन्होंने यह भी बताया कि प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी के विषयों की जिस तरह की प्रासंगिक और तार्किक समझ की आवश्यकता होती है, वह कई बार प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के दौरान गायब पाई जाती है, जो उन्हें अपने गृह राज्यों में प्राप्त होती है और यही कारण है कि उन्हें कोटा में तैयारी पूरी करना बेहद मुश्किल लगता है.
यूपी, एमपी जैसे दूसरे राज्य से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोटा आने वाले छात्र को परीक्षा की तैयारी के लिए प्रति वर्ष 150000 रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक खर्च होता है. आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के लिए कई बार उनके परिवार अपने बच्चों को कोटा में पढ़ने के लिए जिस तरह का मौद्रिक निवेश करते हैं, वह उन पर सफल होने के लिए अतिरिक्त दबाव लाता है. कुछ मामलों में यह भी पाया गया है कि यदि कोई छात्र शुरुआती प्रयासों के दौरान परीक्षा उत्तीर्ण नहीं कर पाता है, तो बाद में उस पर सफल होने का दबाव बढ़ जाता है.