सेना को दूध सप्लाई करने वाली 132 साल पुरानी मिलिट्री फार्म सर्विस बंद हुई
भारतीय सेना ने 132 साल पुराने 130 मिलिट्री फार्म बंद कर दिए हैं। 31 मार्च को इसे बंद करने की औपचारिक घोषणा हुई। साथ ही दिल्ली छावनी में इन फार्म्स को बंद करने को लेकर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। सेना ने अपने बयान में कहा, ‘राष्ट्र की 132 साल तक शानदार सेवा करने के बाद इस संगठन को बंद किया जा रहा है।’
सबसे पहले जानिए कि क्यों लेना पड़ा सेना को यह फैसला?
मिलिट्री फार्म्स की स्थापना ब्रिटिश काल में शुरू हुई थी। पहला मिलिट्री फार्म इलाहाबाद में 1 फरवरी 1889 को खोला गया था। उद्देश्य साफ था। सेना के कैम्प शहरों के बाहरी इलाकों में होते थे। वहां दूध सप्लाई का कोई आसान तरीका नहीं था। इसी वजह से सेना ने अपने मिलिट्री फार्म बनाए, ताकि सेना के जवानों को ताजा और पौष्टिक दूध मिल सके।
पिछले साल तक देशभर में 130 मिलिट्री फार्म्स चल रहे थे। लेह और कारगिल जैसे दुर्गम इलाकों में भी मिलिट्री फार्म काम करते रहे। पर पिछले कुछ वर्षों में बड़े बदलाव हुए हैं। खासकर, मिलिट्री कैम्प अब शहरों के करीब आ गए हैं। दूध की सप्लाई पर भी अब चिंता करने की जरूरत नहीं रही क्योंकि सेना को होने वाली सप्लाई में मिलिट्री फार्म की हिस्सेदारी सिर्फ 14% रह गई थी। सीमा पर तैनात सिपाहियों को पैक्ड दूध की सप्लाई होती है।
एक और बड़ा कारण था, इन पर होने वाला सालाना 280 करोड़ रुपए का खर्च। इसे बचाने और सैन्य सुधारों के हिस्से के तौर पर यह फैसला लिया गया। दरअसल, सेना अपना फोकस पूरी तरह कॉम्बेट रोल पर करना चाहती है।
दरअसल, यह एकाएक लिया गया फैसला नहीं है। दिल्ली कैंट में 31 मार्च को हुए डिसबैंड कार्यक्रम से काफी पहले 2013 में ही चरणबद्ध तरीके से मिलिट्री फार्म्स बंद करने की तैयारी हो गई थी। जून 2013 में क्वार्टर मास्टर जनरल की ब्रांच ने यह फैसला किया था।
जून 2014 में डिप्टी डायरेक्टर जनरल मिलिट्री फार्म्स ने एक आदेश जारी किया कि दूध की सप्लाई की जिम्मेदारी मिलिट्री फार्म्स से आर्मी सर्विस कॉर्प्स (ASC) को सौंप दी जाए। 2016 में लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकटकर (रिटायर्ड) ने सेना की कई शाखाओं के पुनर्गठन की सिफारिश की जिसमें मिलिट्री फार्म्स को बंद करने का सुझाव भी शामिल था।