अहमदाबाद
गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव की उठापटक तेज हो गई है सभी पार्टियां और कैंडिडेट टिकटों की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं। वहीं इस बार सत्तारूढ़ बीजेपी ने शीर्ष पदाधिकारियों और बुजुर्ग नेताओं को आगामी स्थानीय निकाय चुनाव में आराम देने का मन बना लिया है। दरअसल पार्टी ने इस बार टिकट को लेकर कुछ और पैमाने तय किए हैं और टिकटों के लिए जो मानक तय किए हैं, उससे भटककर अपना पैर नहीं रखा है। पार्टी के 60 वर्ष से ज्यादा की आयु के कार्यकर्ताओं को टिकट नहीं मिलेगा। साथ ही तीन टर्म से निर्वाचित हो रहे नेताओं-कार्यकर्ता टिकट की दावेदारी नहीं कर सकेंगे।
दरअसल पार्टी के 60 साल की उम्र पार कर चुके नेता और अधिकारी नामांकित होने के लिए कड़ी पैरवी कर रहे हैं, लेकिन पार्टी इस बार कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। वहीं पार्टी के बड़े नाम ही नहीं बल्कि 50% पार्षदों को पार्टी के नए मानदंडों के कारण टिकट मिलेगगा। बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने बुधवार को अहमदाबाद के लिए टिकट वितरण का मुद्दा उठाया। बैठक देर शाम खत्म हुई, और सूत्रों के अनुसार लिस्ट को अंतिम रूप दिया गया है।
गुजरात बीजेपी अध्यक्ष बोले- गलत मिसाल न दें
सूत्रों के मुताबिक बैठक में निवर्तमान मेयर बिजल पटेल और स्थायी समिति के अध्यक्ष अमूल भट्ट को टिकट दिए जाने की मांग की गई। लेकिन पार्टी अध्यक्ष सी आर पाटिल ने ऐसी मांगों को खारिज करते हुए कहा कि पार्टी अहमदाबाद नगर निगम चुनाव में एक भी गलत मिसाल कायम नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि पांच अन्य निगम चुनाव हो रहे हैं और अहमदाबाद में कोई भी परिवर्तन अन्य निगमों को भी प्रभावित करेगा।
नए चेहरों को मैदान में उतारने में पर जोर
अहमदाबाद नगर निगम में बीजेपी नेता और वसना वार्ड से वरिष्ठ पार्षद अमित शाह अपने बेटे के लिए टिकट के लिए ताल ठोक रहे हैं। वह पात्र नहीं है क्योंकि वह दोनों 60 साल से ऊपर हैं और तीन से अधिक कार्यकालों से पार्षद हैं। उन्होंने एएमटीएस के अध्यक्ष, मेयर के रूप में कार्य किया और अंतिम समय में पार्टी के नेता थे। पार्टी ने उप-महापौर दिनेश मकवाना को पद से हटा दिया, जो पिछले तीन कार्यकाल से पार्षद रहे हैं, वे भी इस दौड़ से बाहर हैं। आरक्षित सीट पर चुने जाने पर उन्होंने टिकट की पैरवी की, लेकिन पार्टी ने उनके स्थान पर नए चेहरे को मैदान में उतारने का फैसला किया है।
विरोध प्रदर्शनों की फुसफुसाहट के सीनियर नेता खुलकर नहीं आ रहे सामने
वहीं पहली बार चुने गए बीजेपी मेयर राजू ठाकोर भी 60 साल पार कर चुके हैं। ठाकोर पर पार्टी का चाबुक पहले से ही सेट था। वहीं अंतिम रूप से पसंदीदा लोगों को समायोजित करने के लिए पोस्ट को विशेष रूप से बनाया गया था, जो अन्य पदों के लिए योग्य नहीं थे। दरअसल पार्टी का सख्त रुख कई सीनियरों को आगोश में ले लेगा। विरोध प्रदर्शनों की फुसफुसाहट हुई है, लेकिन कम ही सामने आ रहे हैं। हालांकि कुछ नेताओं ने यह प्रतिनिधित्व किया है कि सीनियरों के बिना नागरिक निकाय अच्छी तरह से कार्य नहीं कर पाएंगे क्योंकि नव-निर्वाचित पार्षदों को सीखने में समय लगेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अधिकारियों के रूप में यह चुने हुए लोगों को ध्यान नहीं देता है, और नए लोगों के लिए एक और भी कठिन समय होगा।