‘समझौते’ से वार्ता की गुंजाइश
दरअसल, सरकार और आंदोलनकारी किसान संगठनों के बीच मंगलवार को ‘समझौते’ की गुंजाइश बनी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और संयुक्त मोर्चा के सदस्य शिव कुमार कक्का ने जल्द बातचीत के संकेत दिए। इसके लिए सहमति बनाने की कोशिशों का दौर जारी है। पंजाब के किसान संगठनों और संयुक्त मोर्चा की मंत्रणा हुई। पंजाब के संगठनों को छोड़कर कई राज्यों के कुछ किसान संगठन अब गतिरोध तोड़कर सरकार से बातचीत के पक्ष में खड़े होते जा रहे हैं। ऐसे संगठनों का मानना है कि तीनों कानूनों को खत्म करने पर अड़ने के बजाए न्यूनतम समर्थन मूल्य समेत अन्य बिंदुओं पर सरकार से नए सिरे से बात की जाए। सरकार भी बिंदुवार बातचीत के लिए तैयार है। आक्रामक तेवर अख्तियार करने वाले पंजाब के कई संगठन नरम पड़े किसान संगठनों को सरकारी नुमाइंदा बताते हैं। कृषि मंत्री तोमर का कहना कि असली किसानों और उनकी समस्याओं पर बात होगी। ऐसे में बातचीत की नई तारीख जल्द तय हो सकती है। अभी तक सरकार को देश की 450 किसान जत्थेबंदियों में से करीब सौ से अधिक का समर्थन मिल चुका है। यहां यह बता दें कि आंदोलन में करीब 55 किसान संगठनों की सक्रियता है जिनमें अकेले 32 जत्थेबंदियां पंजाब की हैं। कक्का मध्यप्रदेश से जुड़े हैं।
‘संघर्ष’ की दिशा
गुजरात में पीएम नरेंद्र मोदी और दिल्ली में नरेंद्र तोमर जब हमदर्दी दिखा कर अलग-अलग किसान संगठनों से अगली बातचीत के लिए समर्थन जुटा रहे थे, तभी मैराथन मंथन कर संयुक्त मोर्चा संघर्ष की दिशा में कदम बढ़ा रहा था। सरकार से मिले प्रस्तावों को नामंजूर कर लौटाने का फैसला किया, वहीं 20 दिसंबर को देश भर में गांव, तहसील और जिला स्तर पर कैंडल जलाकर श्रद्धांजलि सभा आयोजित करने का एलान किया गया। इस आंदोलन के दौरान ठंड, बीमारी, दुर्घटना में कुछ किसानों की मौत हुई है। राजस्थान हाई-वे बंद करने पर भी उनकी नजर है। चिल्ला बॉर्डर बुधवार को पूरी तरह से बंद होगा।
‘भरोसे’ के लिए कई ‘शर्तें’
सरकार और किसान संगठनों के बीच समझौते और संघर्ष की कड़ी में ‘भरोसे’ को लेकर अब कई शर्तें रखी जा रही हैं। एमएसपी तो बड़ा मुद्दा है ही, साथ ही सरकार को दो टूक संदेश भी कि वह आंदोलन के समानांतर अपना देशव्यापी समर्थन अभियान बंद करे। इसके साथ-साथ नक्सली, खलिस्तानी, टुकड़े-टुकड़े गैंग कहा जाना भी बंद हो। इस पर ‘डेडलॉक’ टूट सकता है। दूसरी तरफ, पंजाब की जत्थेबंदियों का बार-बार जोर है कि तीनों कानून वापस लिए जाएं। ऐसे में संयुक्त मोर्चा के सामने ‘एकजुट’ रहने की चुनौती है। संयुक्त मोर्चा के सात सदस्यों में से एक प्रमुख सदस्य शिवकुमार कक्का की ओर से सरकार से बातचीत के संकेत पर फिलहाल सभी संगठनों ने चुप्पी साध ली है। ज्यादातर ने यही कहा, संयुक्त मोर्चा सदस्य की राय पर वह कुछ टिप्पणी नहीं करेंगे, लेकिन पंजाब की जत्थेबंदियों में से एक भाकियू डकौंदा के मंजीत धनेर आक्रामक तेवर में हुंकार भरते हैं कि आंदोलन जारी रहेगा और हम जंग जीत के जाएंगे। ऐसे में अगले 72 घंटे फिर अहम हैं और सभी की निगाहें 20 की श्रद्धांजलि सभा पर टिकी है लेकिन सरकार की कोशिश है कि अगली वार्ता की तारीख जल्द तय हो।