मोदी सरकार के ‘आत्मनिर्भर’ भारत में नियम बदलकर ली जा रही विदेशी मदद
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पिछले साल 'आत्मनिर्भर भारत' का नारा बुलंद किया। कहा कि उनकी सरकार अन्य देशों पर निर्भरता खत्म कर रही है। जल्द से जल्द हर वह सामान भारत में बनेगा, जो अभी बाहर से मंगवाया जा रहा है। इसके लिए पॉलिसी में भी कई बदलाव किए गए। पर कोरोना वायरस की दूसरी लहर की वजह से मोदी सरकार ने न सिर्फ मनमोहन सिंह सरकार के 16 साल पुराने नियम को बदला, बल्कि चीन समेत 40 से ज्यादा देशों से गिफ्ट, डोनेशन भी कबूल किए हैं।
आइए, समझते हैं कि विदेशी सहायता को लेकर भारत की नीति क्या रही है और मनमोहन सिंह सरकार के बनाए किस नियम को मोदी सरकार ने बदला है?
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार 2004 से 2014 तक केंद्र में रही। दिसंबर 2004 में जब दक्षिण भारतीय तटीय इलाकों में सुनामी ने तबाही मचाई, तब मनमोहन सिंह ने विदेशी मदद की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी थी कि हम अपने स्तर पर हालात से निपट सकते हैं। जरूरत पड़ेगी तो ही विदेशी सहायता लेंगे। खैर, उसके बाद कभी जरूरत पड़ी नहीं।
मनमोहन सिंह ने जो कहा, उस पर कायम भी रहे। 2005 के कश्मीर भूकंप, 2013 की उत्तराखंड की बाढ़ और 2014 की कश्मीर बाढ़ की राष्ट्रीय आपदाओं के समय भी मनमोहन सिंह ने न तो किसी और देश से राहत मांगी और न ही उनकी पेशकश को स्वीकार किया। और तो और, अगर कोई देश मदद की पेशकश करता तो उसे सम्मान के साथ मना कर दिया जाता।
पर ऐसा नहीं है कि भारत सरकार की हमेशा से पॉलिसी ऐसी ही रही है। इससे पहले उत्तरकाशी भूकंप (1991), लातूर भूकंप (1993), गुजरात भूकंप (2001), बंगाल तूफान (2002) और बिहार की बाढ़ (2004) में भारत ने विदेश से राहत कार्यों में मदद ली थी।
आपको 2018 की केरल बाढ़ याद होगी। तब राज्य सरकार ने कहा था कि 700 करोड़ रुपए की सहायता की पेशकश UAE ने की है। पर केंद्र की मोदी सरकार ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है। राज्य में जो भी राहत एवं पुनर्वास के काम होंगे, उसके लिए घरेलू स्तर पर ही पैसा जुटाया जाएगा। इस पर केंद्र व राज्य सरकारों में विवाद की स्थिति भी बनी थी।