Twin Tower Story: ट्विन टावर को बनाने से लेकर गिराने के बीच का हिसाब-किताब से लेकर, सुपरटेक (Supertech) को हुए नुकसान और भविष्य में होने वाले खर्चे की डिटेल स्टोरी क्या है? चलिए पूरा लेखा-जोखा बिजनेस की भाषा में समझते है।
HIGHLIGHTS
जिस पर पूरे देश और दुनिया की निगाहें लगी थी, वो Twin Tower चंद सेकंड में ही गिरकर ध्वस्त हो गया और एक इतिहास बन गया। देश में ये अपनी तरह का पहला मामला था, जब हजारों किलो विस्फोटक से इतने भीमकाय टावर को गिराया गया हो। इसे बनाने से लेकर गिराने के बीच का हिसाब-किताब से लेकर, सुपरटेक (Supertech) को हुए नुकसान और भविष्य में होने वाले खर्चे की डिटेल स्टोरी क्या है? चलिए पूरा लेखा-जोखा बिजनेस की भाषा में समझते हैं।
क्यों गिराया गया ट्विन टावर?
पूरा खेल उस वक्त शुरू हुआ, जब 2 मार्च, 2012 में टावर संख्या 16 और 17 को लेकर दोबारा संशोधन किया गया। इन्हें 40 मंजिल तक बनाए जाने की अनुमति दी गई। इनकी ऊंचाई 121 मीटर तय हुई। दोनों टावरों के बीच की दूरी 8 से 9 मीटर रखी गई, जबकि नियम के मुताबिक यह 18 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए थी।
कोर्ट का फैसला अगस्त, 2021 में आया था, जिसमें तीन महीने के अंदर टावर गिराने का आदेश दिया गया था, जिसे बाद में तकनीकी दिक्कतों के चलते बढ़ाकर 28 अगस्त 2022 कर दिया गया था। इसमें पूरे 9 साल का वक्त लग गया। सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट सोसाइटी के निवासियों ने पहली बार 2012 में अदालत का रुख किया था। तब इन टावरों को एक रिवाइज्ड बिल्डिंग प्लान के तहत अप्रूवल मिला था। स्वीकृति दिए जाने में अवैध तरीकों का इस्तेमाल हुआ है, जिसके लिए कुछ अधिकारियों को बाद में दंडित भी किया गया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2014 में विध्वंस का आदेश दिया। मामला अंतिम निर्णय के लिए सर्वोच्च न्यायालय में गया।
गिराने में 18 करोड़ आया खर्चा
इन दोनों टावरों को गिराने में लगभग 3600 किलो विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया है। टावरों को गिराने में लगभग 18 करोड़ रुपए का खर्चा आया है। अगर विस्तार से देखें तो दोनों टावरों को नेस्तनाबूद करने में लगभग 267 रुपये प्रति वर्ग फुट अनुमानित है। लगभग 7.5 लाख वर्ग फुट के कुल निर्मित क्षेत्र को देखते हुए विस्फोटकों सहित कुल विध्वंस लागत करीब 18 करोड़ रुपये बताई जा रही है।
मलबा बेचकर जुटाया जायेगा लगभग 15 करोड़ रुपए
इस 18 करोड़ रुपए में से सुपरटेक लगभग 5 करोड़ रुपये का भुगतान कर रही है और बकाया 13 करोड़ रुपये की राशि मलबे को बेचकर प्राप्त की जाएगी, जो कि 4,000 टन स्टील सहित लगभग 55,000 टन होगी। इसके अलावा इमारतों को गिराने के लिए जिम्मेदार कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग ने आसपास के क्षेत्र में किसी भी क्षति के लिए 100 करोड़ रुपये का बीमा कवर भी हासिल किया है। अगर आसपास की इमारतों को नुकसान हुआ, तो ये मुआवजे के तौर पर लोगों को दिए जाएंगे।
कंपनी को करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान
रियल्टी फर्म सुपरटेक लिमिटेड के चेयरमैन आर के अरोड़ा ने रविवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद नोएडा स्थित ट्विन टावर इमारत को गिराए जाने से कंपनी को करीब 500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। इसमें इमारत के निर्माण और जमीन की खरीद पर आई लागत के अलावा नोएडा प्राधिकरण को तमाम मंजूरियों के लिए दिए गए शुल्क और बैंकों को कर्ज पर दिया गया ब्याज शामिल है। इसके अलावा हमें इन टावर में फ्लैट खरीदने वाले ग्राहकों को भी 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देना पड़ा है।
मौजूदा बाजार के हिसाब से 1,200 करोड़ रुपये थी कीमत
ये दोनों टावर नोएडा के सेक्टर 93ए में एक्सप्रेसवे पर स्थित सुपरटेक की एमराल्ड कोर्ट परियोजना का हिस्सा थे। इन टावर में बने 900 से अधिक फ्लैट की मौजूदा बाजार मूल्य के हिसाब से कीमत करीब 1,200 करोड़ रुपये थी। अरोड़ा ने कहा कि अदालत ने भले ही इन टावर को गिराने का आदेश दिया, लेकिन सुपरटेक ने नोएडा विकास प्राधिकरण की तरफ से स्वीकृत भवन योजना के अनुरूप ही इनका निर्माण किया था। उन्होंने कहा कि इन दोनों टावर को विस्फोटक लगाकर ढहाए जाने के लिए एडिफिस इंजीनियरिंग कंपनी को सुपरटेक 17.5 करोड़ रुपये का भुगतान कर रही है। एडिफिस ने इसे अंजाम देने का जिम्मा दक्षिण अफ्रीकी फर्म जेट डिमॉलिशंस को सौंपा था।
होमबॉयर्स से लगभग 180 करोड़ रुपये हुए थे एकत्र
ट्विन टावर में से प्रत्येक में 40 मंजिल बनाने की योजना थी। इनमें से कुछ कोर्ट के फैसले के कारण बन नहीं सकीं, कुछ को अंतिम बार ढहाए जाने से पहले ही तोड़ दिया गया। इनमें एपेक्स में 32 और सियान टावर में 29 मंजिल हैं। कुल 915 फ्लैटों में से लगभग 633 बुक किए गए थे और कंपनी ने होमबॉयर्स (जो लोग इन्हें खरीद रहे थे) से लगभग 180 करोड़ रुपये एकत्र किए। अब कंपनी को इन लोगों के पैसे 12 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने को कहा गया है।
कितने शहरों में लॉन्च हुए प्रोजेक्ट?
सुपरटेक कंपनी ने अभी तक नोएडा, ग्रेटर नोएडा, मेरठ, दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर के 12 शहरों में अपने प्रोजेक्ट लॉन्च किए हैं। कंपनी को इसी साल नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने दीवालिया घोषित कर दिया था। इस पर करीब 400 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है।
क्या है ट्विन टावर का इतिहास और कौन है मालिक ?
ये पूरी कहानी 23 नवंबर, 2004 से शुरू होती है। उस वक्त नोएडा प्रशासन ने सेक्टर- 93ए के प्लॉट नंबर 4 को एमराल्ड कोर्ट के लिए आवंटित किया था। इसमें ग्राउंड फ्लोर सहित 9 मंजिल के 14 टावर बनाने की मंजूरी थी।
एमराल्ड कोर्ट परियोजना के तहत बने ट्विन टावर सुपरटेक लिमिटेड नाम की कंपनी के हैं। जो एक निजी कंपनी है। कंपनी 7 सितंबर, 1995 में निगमित हुई थी। सुपरटेड के संस्थापक आर के अरोड़ा हैं। उनकी 34 कंपनियां हैं। आर के अरोड़ा की पत्नी संगीता अरोड़ा ने 1999 में दूसरी कंपनी सुपरटेक बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड शुरू की थी।