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Research: वैज्ञानिकों ने लंगड़े चूहे को भी चलाया, शोध से जगी उम्मीद- अब जोड़ों के दर्द की होगी छुट्टी

Research: वैज्ञानिकों ने लंगड़े चूहे को भी चलाया, शोध से जगी उम्मीद- अब जोड़ों के दर्द की होगी छुट्टी

लोहे के मशीन, घर के गेट-ग्रील वगैरह या फिर गाड़ी का इंजन के ठीक से चलने और काम करने के लिए जिस तरह ग्रीस, मोबिल, पेस्ट और इंजन ऑयल का महत्व होता है, उसी तरह शरीर के जोड़ों के ठीक से काम करने के लिए कार्टिलेज का महत्व होता है। कार्टिलज यानी ऊतकों का समूह, जो हड्डियों के जोड़ों के बीच गद्दी की तरह काम करता है। इसके खत्म होने की वजह से ही जोड़ों की हड्डियां टकराती हैं और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी दर्दनाक समस्या पैदा होती है। बढ़ती उम्र के साथ अक्सर लोगों को यह समस्या होती है। वैज्ञानिकों ने इस बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला है।

अबतक यह माना जाता रहा है कि एक बार कार्टिलेज घिस जाए या फिर खत्म हो जाए तो दोबारा नहीं बनते, लेकिन स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के ताजा शोध से बड़ी उम्मीद जगी है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने अर्थराइटिस से पीड़ित चूहों के जोड़ों में नए कार्टिलेज तैयार करने में सफलता हासिल की है। नेचर मेडिसिन जर्नल में यह शोध प्रकाशित हुआ है। 

चूहों के जोड़ों में नए कार्टिलेज विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों ने स्टेम सेल का इस्तेमाल किया, जो हड्डियों के कोनों में निष्क्रिय पड़ी थी। वैज्ञानिकों ने इन निष्क्रिय स्टेम सेल को जागृत कर कार्टिलेज विकसित किया। यह शोध ऐसे चूहों पर किया गया, जिनके घुटनों में अर्थराइटिस की समस्या थी। ऐसे चूहे भी शोध में शामिल किए गए, जिनमें मानव हड्डी प्रत्यारोपित की गई थी। पहला चूहा ठीक से चल नहीं पाता था। कार्टिलेज विकसित होने के बाद उसका लंगड़ाना खत्म हो गया और चलने के दौरान उसने मुंह बनाना भी बंद कर दिया।

मालूम हो कि साल 2018 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के चार्ल्स वॉक फई चान ने हड्डियों के बीच सुप्त स्टेम सेल की खोज की थी, जिनसे कार्टिलेज विकसित हो सकते थे। तब चुनौती यह थी कि इन्हें कैसे जागृत किया जाए। ताजा शोध के नेतृत्वकर्ता डॉ. माइकल लोंगाकर ने तीन चरणों में यह खोज की। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इंसानों में शुरुआती चरण में ही बीमारी का इलाज हो सकेगा।

वैज्ञानिकों का कहना है कि अब बड़े जानवरों में यह प्रयोग कर के देखा जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि शोध में कामयाबी मिलेगी और आने वाले समय में इंसानों में अर्थराइटिस के इलाज का रास्ता खुलेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 60 साल से ज्यादा उम्र के करीब 10 फीसदी पुरुष और 18 फीसदी महिलाएं ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित होती हैं।

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