काव्य-कैफ़े महिला दिवस के अवसर पर एक महफ़िल का आयोजन करने जा रहा है। यह आयोजन 6 मार्च की शाम 6 बजे से शुरू होगा जिसका प्रसारण अमर उजाला काव्य के फेसबुक पेज और यूट्यूब चैनल पर होगा। सभी कवि ज़ूम एप के माध्यम से जुड़ेंगे।
ये कलमकार ,सबको अंधेरा बांटता है। वो रात को अपनी कलम में भरकर, अंधेरा लिखता है, घना काला घुप्प अंधेरा।
इलाहाबाद की पृष्ठभूमि से आने वाले मोहित पेशे से इंजीनियर हैं लेकिन पिछले 3 साल से साहित्य सेवा में तत्पर हैं। इनके लेखन में अक्सर आपको समाज के उजाले में छिपे उस अंधेरे की बात दिखेगी जिसका कोई जिक्र कहीं नहीं होता है। इनकी किन्नर समुदाय पर लिखी गयी कविता बहुत लोकप्रिय है जो कई प्रसिद्ध मंचों पर चैनलों तक पहुंची। मोहित ने लिखना बचपन से शुरु कर दिया था लेकिन कार्यक्रमो में शिरकत करना पिछले 3 सालो में ही शुरू किया। मोहित अब तक तकरीबन 100 से अधिक कार्यक्रमो में कविता पाठ कर चुके हैं।
मोहित की एक रचना 'हां मैं हकलाता हूं' बहुत सराही गयी जो कि विभिन्न मंचों व अखबारों में भी प्रशंसा का विषय बनी। इस कविता में मोहित हकलाने वाले लोगों के दर्द को उजागर करतें हैं व उनको आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। मोहित का मानना है कि उनकी कलम हमेशा समाज के प्रति लिखती रहेगी और उनकी कविताएं जनमानस की आवाज़ को बुलंद करती रहेंगी।