पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नंदीग्राम के बिरुलिया गांव में चुनाव प्रचार के दौरान बुधवार को घायल हो गईं थीं। ममता बनर्जी ने इसे हमला बताया और आरोप लगाया कि साजिश के तहत उन्हें चोट पहुंचाई गई। ममता के इस आरोप ने पश्चिम बंगाल के चुनावी माहौल को औऱ गर्म कर दिया है।
इस हमले को जहां विपक्ष ममता के द्वारा किया गया नाटक बता रहा है तो वहीं ममता को समर्थकों की पूरी सहानुभूति मिल रही है। ममता का हमलों से नाता नया नहीं है। हम आपको बता रहे हैं उन तीन हमलों के बारे में जिसने ममता बनर्जी को गलियों की राजनीति से सत्ता के शीर्ष पर ला दिया और टीएमसी पार्टी का प्रमुख बना दिया।
तृणमूल कांग्रेस दल (टीएमसी) की संस्थापक और पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत कॉलेज के दिनों में ही कांग्रेस की सदस्यता प्राप्त कर की थीं। वर्ष 1976 से 1980 तक वह राज्य महिला कांग्रेस की सचिव पद पर आसीन रहीं।
ममता ने 1980 और 1990 के दशक में युवा कांग्रेस नेता के रूप में सत्तारूढ़ मार्क्सवादियों के खिलाफ सड़क से परिवर्तन की लड़ाई शुरू की फिर पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की औद्योगिक नीतियों के खिलाफ उनके संघर्ष ने उन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख के रूप में खड़ा कर दिया। इस दौरान भी उन्होंने विरोधियों पर 'शारीरिक हमले' का आरोप लगाया था। इन्हीं हमलों से उनके राजनीति करियर को बल मिला और वह बंंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो बनीं।
पहला हमला: 16 अगस्त, 1990 को, जब ममता बनर्जी दक्षिण कोलकाता के हाजरा में एक युवा कांग्रेस आंदोलन का नेतृत्व करने वाली थीं, उस समय बंगाल में माकपा के युवा कार्यकर्ता लालू आलम द्वारा उन पर हमले की खबर से हड़कंप मच गया था। उस समय ममता के सिर पर पट्टी बंधी हुई तस्वीर अखबारों में आई थी, और खबर बनी थी कि इस तरह के हमले से ममता को अपंग करने या उनकी हत्या करने की साजिश रची गई है। इस खबर और ममता की तस्वीर ने उस समय अखबारों की बिक्री में तेजी ला दी थी।
इसके बाद 1984 में जादवपुर लोकसभा चुनाव में सीपीआई (एम) के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी को हराकर ममता बनर्जी पहली बार राष्ट्रीय राजनीति में आईं। और राजीव गांधी की युवा नेताओं की टीम के सदस्य के रूप में राष्ट्रीय राजनीति की शुरुआत की। उस घटना के 19 साल बाद, 2019 में आलम को अदालत ने आरोपों से बरी कर दिया था।
दूसरा हमला: अक्तूबर 1998 में ममता बनर्जी पर फिर एक बार हमले की खबर जंगल में आग की तरह फैल गई। उस वक्त कोलकाता की एक अदालत के एक आदेश पर दक्षिण कोलकाता के गोलपार्क में बेदी भवन की जमीन पर बसे लगभग 70 परिवारों को बाहर निकालने के जब एक विशाल पुलिस बल वहां पहुंचा था, तो वहां उन्होंने बनर्जी और उनके समर्थकों को पाया। ममता ने पुलिस से कहा कि अदालत का जो आदेश है उसके बारे में वह वहां बसे लोगों को बताएं, इस पर पुलिस से उनकी झड़प हो गई।
इसके बाद ममता ने आरोप लगाया कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इस दौरान उन्हें किसी ने दांत से काटा और उनकी साड़ी फाड़ दी। इस आरोप के ठीक एक घंटे के भीतर, बंगाल के दूरदराज के हिस्सों में लोगों ने अफवाहें सुनीं कि ममता पुलिस के साथ झड़प में मारी गईं। इसके बाद रेलवे ट्रैक और राष्ट्रीय राजमार्ग घंटों तक अवरुद्ध रहे। कई जगहों पर तोड़फोड़ हुई, भाजपा कार्यकर्ता, जो उस समय टीएमसी के सहयोगी थे, उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया।
तीसरा हमला: तीसरी घटना, जो बंगाल विधानसभा पर एक दाग छोड़ गई, 30 नवंबर 2006 को हुई। बनर्जी, तब सांसद थीं और उन्होंने लेफ्ट फ्रंट सरकार द्वारा किसानों के 990 एकड़ खेत को टाटा मोटर्स को सौंपने के फैसले के विरोध में कोलकाता से हुगली जिले के सिंगूर तक पैदल मार्च निकाला था। इस दौरान राजमार्ग पर जब पुलिस द्वारा कथित तौर से उन्हें रोका गया था, तो वह कोलकाता लौट आई थीं और सीधे विधानसभा भवन के लिए रवाना हुई थीं।
बनर्जी ने टीएमसी विधायकों के सामने आरोप लगाया था कि उनके साथ कुछ पुलिसकर्मियों ने मारपीट की। इसके बाद टीएमसी विधायकों ने विधानसभा में तोड़फोड़ की थी। टीएमसी कार्यकर्ताओं ने यातायात को अवरुद्ध और दुकानों को बंद करवा दिया। उसके बाद उनकी पार्टी ने 12 घंटे तक बंगाल बंद का आह्वान किया था।