यह पहली बार नहीं है जब भारत को जी-7 समिट में गेस्ट कंट्री के रूप में बुलाया गया है. जी-7 के प्रमुख देश अमेरिका के साथ कई मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद लगातार यह पांचवीं बार है जब भारत को समिट में बुलाया गया है. आइए जानते हैं इसके क्या मायने हैं?
जापान के हिरोशिमा में शुक्रवार से जी-7 समिट शुरू हो गया है. भारत जी-7 का स्थायी सदस्य नहीं है लेकिन फिर भी पिछले कई सालों से लगातार भारत को इस समिट में गेस्ट के तौर पर बुलाया जाता है. 2019 के बाद से यह लगातार पांचवीं बार है जब भारत को जी-7 समिट में बुलाया गया है. गेस्ट कंट्री के तौर भारत को सबसे पहले जी-7 समिट में फ्रांस ने 2003 में बुलाया था. उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी पांच बार जी-7 बैठक में हिस्सा लिया है.
इस साल भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, इंडोनेशिया, साउथ कोरिया, वियतनाम को भी गेस्ट कंट्री के तौर पर बुलाया गया है. वहीं, संस्था के रूप यूनाइटेड नेशन, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, डब्ल्यूएचओ और डब्ल्यूटीओ को बुलाया गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुक्रवार को तीन देशों जापान, पापुआ न्यू गिनी और ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रवाना हुए. पीएम मोदी जापान के हिरोशिमा शहर में आयोजित हो रही जी-7 समिट में भाग लेंगे.
वैसे तो यह पहली बार नहीं है जब भारत को जी-7 देशों की ओर से भारत को बुलाया गया है. लेकिन पीएम मोदी का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि 1974 के पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद यह पहली बार है जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री हिरोशिमा का दौरा कर रहा है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1945 में परमाणु हमले का शिकार हिरोशिमा के दौरे पर इससे पहले 1957 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू गए थे.
इसके अलावा यूक्रेन में रूसी आक्रमण को लेकर भी भारत का रुख अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी के रुख से अलग रहा है. साथ ही आर्थिक प्रतिबंध के बावजूद भारत रूस से कच्चा तेल आयात कर रहा है. इससे पहले गेहूं के निर्यात पर भी भारत ने रोक लगा दी थी. जिससे अमेरिका खुश नहीं था. ऐसे में एक बार फिर से भारत को गेस्ट कंट्री के तौर पर बुलाने के क्या मायने हैं?