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कोरोना वायरस ने दुनिया में मचाई तबाही

कोरोना वायरस ने दुनिया में मचाई तबाही

दुर्भाग्यवश कोविड-19 के प्रसार का दुनिया भर में राजनीतिकरण हो गया, जबकि इस अपराध की गहराई से जांच होनी थी। जिस चीन ने दुनिया भर में संक्रमण फैलाया, वह छूट गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन ने अपनी प्रयोगशालाओं में इस वायरस को पैदा किया और पूरे विश्व को संक्रमित कर दिया। शुरुआती दौर में किसी देश को कोरोना के वैश्विक प्रसार के पीछे चीन का हाथ होने पर संदेह भी नहीं हुआ। चीन ने कोरोना वायरस का इस्तेमाल रणनीतिक हथियार के तौर पर किया। चीन सुनियोजित ढंग से पश्चिमी दुनिया की आर्थिक ताकत को ध्वस्त करना चाहता था। हम लोगों ने यह देखा भी कि महामारी का प्राथमिक फोकस कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका-यानी जी-7 देशों को निशाना बनाना था। जापान को छोड़ दें, तो दुनिया के इन आर्थिक नेताओं ने भारी तबाही का सामना किया। और ताजा आंकड़े भी यही बताते हैं कि विकसित पश्चिमी देशों में नुकसान ज्यादा है। 

पश्चिमी देशों में मौतों का आंकड़ा देखें, तो अमेरिका में 3,54,000, ब्रिटेन में 75,000, फ्रांस में 64,000, जर्मनी में 34,000, इटली में 74,000 और कनाडा में 15,000 मौतें हुईं। इन देशों की तुलना चीन से कीजिए, जहां मौत का आंकड़ा सिर्फ 4,700 है। जबकि भारत में1,46,000 लोगों ने कोविड-19 के कारण अपनी जान गंवाई। इस बारे में पहले ही बताया जा चुका है कि 2019 में बीजिंग ने कोविड-19 से संक्रमित हुबेई प्रांत के लोगों को, वुहान शहर उसी राज्य में है, चीनी नववर्ष की छुट्टियों के अवसर पर रियायती हवाई टिकट पर अमेरिका और यूरोप के देशों में भेजा। यूरोप-अमेरिका को वायरस के खतरे के बारे में देर से पता चला और जनवरी के आखिर में जाकर उन्होंने चीन की उड़ानों पर रोक लगा दी। लेकिन तब तक संक्रमित चीनियों द्वारा उन देशों में व्यापक पैमाने पर संक्रमण फैल चुका था। हैरानी तो इस पर भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन को विगत अक्तूबर तक भी कोविड-19 के वैश्विक प्रसार में चीन के हाथ के बारे में ठीक-ठीक पता नहीं था, ताकि वह अपने विशेषज्ञों को चीन भेजकर वस्तुस्थिति के बारे में पता लगाए। पिछले महीने विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने यहां से प्रमाणित 10 अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों को चीनी शहर वुहान भेजने की अनुमति दी है। अनुमान यही है कि इसी महीने ये वैज्ञानिक कोरोना वायरस के प्रसार में बीजिंग का हाथ होने से संबंधित तथ्यों की जांच करेंगे। लेकिन सच्चाई यही है कि चीन की भूमिका की जांच करने के मामले में बहुत देर हो गई है।

विगत सितंबर में एक चीनी वैज्ञानिक डॉ. ली मेंग यान ने, जो फिलहाल अमेरिका में छिपी हुई हैं, सार्वजनिक तौर पर इस तथ्य का खंडन किया कि कच्चे मांस के बाजार से कोविड-19 का संक्रमण फैला। डॉ. ली के मुताबिक, उनके पास इसके सुबूत हैं कि कोरोना वायरस चीनी सैन्य प्रयोगशालाओं से फैला। स्पष्ट है कि जैविक हथियारों से संबंधित वैश्विक समझौते का उल्लंघन हुआ है। जबकि चीन ने भी इस समझौते पर दस्तखत किए हैं। डॉ. ली के अनुसार, विगत दिसंबर में जब वह सार्स-कोव-2 की जांच कर रही थी, उससे पहले से मानव से मानव संक्रमण व्याप्त था। एक बेहद हैरान करने वाली बात यह है कि कोरोना संक्रमण का असर उन देशों में उतना भयावह नहीं है, जिन देशों के साथ चीन के बेहतर रिश्ते हैं, और जिन देशों को चीन ने कर्ज दिया है और उसकी परियोजनाएं चल रही हैं। उन देशों में कोरोना से हुए नुकसान का आंकड़ा देखने पर ही असलियत सामने आ जाती है।

उदाहरण के लिए, इंडोनेशिया में 22,000, नाइजीरिया में 1,200 और पाकिस्तान में 10,000 मौतें हुईं। चीनियों की निरंतर आवाजाही के बावजूद इन देशों की स्थिति खराब नहीं हुई। जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़े के अनुसार, इसी दौरान दुनिया भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 3.6 करोड़ रही, जबकि 10 लाख मौतें हुईं। एक तरफ चीन जहां कोविड-19 महमारी में उसकी भूमिका की जांच को खारिज करता रहा है, वहीं यह भी साफ नहीं है कि उसने महामारी से संबंधित अपने देश के आंकड़ों को सुरक्षित रखा है या नहीं। हाल ही में महाराष्ट्र के एक बेहद नामचीन अस्पताल के महामारी विशेषज्ञ ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र सरकार से चीन सरकार से महामारी से संबंधित आंकड़ा हासिल करने की मांग की, ताकि कारगर वैक्सीन तैयार की जा सके। याचिका में कहा गया कि कारगर वैक्सीन तैयार करने के लिए ग्राउंड जीरो (जहां से वायरस की शुरुआत हुई) का सटीक अध्ययन जरूरी है। यह याचिका खारिज कर दी गई। 

दरअसल सरकार इस मुद्दे पर चीन से टकराव नहीं चाहता। इस मामले में सभी देशों को चीन पर दबाव बनाना होगा, तभी बात बनेगी। इसलिए भारत ने ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ द्वारा चीन की भूमिका की जांच की मांग का समर्थन किया। यह अलग बात है कि चीन की सक्रियता से यह वैश्विक कोशिश भी बेकार हो गई। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मामले में निरपेक्ष जांच करेगा, जिससे कि चीन की असलियत सामने आ सके। चूंकि चीन को घेरने में पहले ही बहुत देर हो गई है, ऐसे में, संभावना यही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जांच का वही निष्कर्ष देगा, जो चीन चाहेगा। इस मामले में सच्चाई जान पाना बेहद कठिन है। लेकिन अमेरिका के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर व्यापक बहस कारगर हो सकती है। पर अमेरिका फिलहाल नेतृत्व परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। नए राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा जिम्मेदारी संभालने के बाद ही इस मोर्चे पर कुछ उम्मीद की जा सकती है। 




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