होली उत्सव 29 मार्च को है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन करने के बाद अगले दिन होली उत्सव मनाया जाता है। रंगों का यह त्योहार अपने आप में निराला है। इस पर्व में प्रेम, यौवन, सांस्कृतिक संगीत और नृत्य, रंग, समरसता, मिठास इन सभी चीजों का समावेश है। होली को बरसाने की होली और भी खास बनाती है। ये होली रंग-गुलाल के साथ-साथ लाठी और डंडों से खेली जाती है।
होली भारतीय पर्वों में आनंदोल्लास का पर्व है । नाचने-गाने, हँसी-मजाक, मौज-मस्ती करने व ईष्योद्वेष जैसे विचारों को निकाल फेंकने का अवसर है । फाल्गुन मास की पुर्णिमा को यह त्योहार मनाया जाता है । होली के साथ अनेक दंत-कथाएँ जुड़ी हुई हैं । होली से एक रात पहले होली जलाई जाती है ।
इसके लिए एक पौराणिक कथा है कि प्रह्लाद के पिता राक्षस राज हरिण्यकश्यप स्वयं को भगवान मानते थे । वे विष्णु के परम विरोधी थे परन्तु प्रहलाद विष्णु भक्त थे । उन्होंने प्रहलाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माने तो उन्होंने अनेक बार उन्हें मारने का प्रयास किया ।
प्रहलाद के पिता ने तंग आगर अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी । होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई । होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था इसलिए होलिका प्रहलाद को लेकर चिता मे जा बैठी परन्तु विष्णु की कृपा से प्रहलाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई ।
यह कथा इस बात का संकेत करती है की बुराई पर अच्छाई की जीत अवश्य होती है । आज भी पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं । यह त्योहार रंगों का त्योहार है ।
इस दिन लोग प्रात: काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं । बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है । वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियाँ व गुब्बारे लाते हैं ।
बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठते हैं । सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते है। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुजियां आदि बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बाँटती हैं व होली का आनंद उठाती हैं ।