नासा (NASA) का आर्टिमिस अभियान (Artemis Mission) का पहला चरण अपने स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) रॉकेट का परीक्षण करेगा. यह नासा का 1960 के दशक के बाद अब तक का सबसे ज्यादा शक्तिशाली रॉकेट है. यह नासा के ही सैटर्न V का उन्नत संस्करण है जिसमें शटल तकनीक का भी उपयोग किया गया है जिससे यह भारी मात्रा में ईंधन, ओरियॉन क्रू कैप्सूल और अन्य जरूरी सामान चंद्रमा तक को ले जाने में सक्षम है. नासा का कहना है कि यह चंद्रमा ही नहीं भावी लंबे अंतरिक्ष यानों के लिए भी उपयोगी होगा.
पिछले कई दशकों से अंतरिक्ष अभियानों में अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जैसे अंतरिक्ष यानों के लिए ही यात्रा कर रहे हैं. अब नासा (NASA) का आर्टिमिस अभियान (Artemis Mission) 2025 तक एक महिला और एक पुरुष को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी में है जिसका पहला चरण 29 अगस्त को लॉन्च हो रहा है. इस लिहाज से अंतरिक्ष अनुसंधान इतिहास में यह एक बड़ी घटना है. इस चरण में नासा स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) नाम के अपने नए रॉकेट का परीक्षण करने जा रहा है जो 1960 के दशक के बाद से सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान होगा.
पिछले 20 सालों में नासा अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (International Space Station) तक ही गए हैं. लेकिन चंद्रमा (Moon) की दूरी उससे हजार गुना ज्यादा है इसलिए वहां तक यात्रियों को पहुंचाने के लिए एक विशाल और शक्तिशाली रॉकेट की जरूरत होगी. स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) नासा के ही सैटर्न V का आधुनिक संस्करण है जो अपोलो युग में इस्तेमाल किया गया था जिसमें एक के ऊपर एक कई चरण हैं. लेकिन इसमें स्पेस शटल की तकनीक भी शामिल की गई है.
नासा का स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) का पहला संस्करण ब्लॉक1 कहा जाता है. लॉन्च पैड के ऊपर यह स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से भी लंबा 23 मंजिला टॉवर जितना ऊंचा है जो कई भारी पेलोड के परीक्षणों से गुजरा है. इससे यह भारी सामग्री पृथ्वी (Earth) की कक्षा के आगे चंद्रमा (Moon) तक ले जाने में सक्षम हो पाया है. इस रॉकेट में भारी मात्रा में ईंधन और अन्य जरूरी सामानों के साथ नया ओरियॉन क्रू कैप्सूल भी भेजा जाएगा.
स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) में एक विशाल कोर स्टेज इंजन के साथ ही बगल में दो ठोस रॉकेट बूस्टर (Solid Rocket Boosters) लगे हुए हैं. कोर में दो विशाल भंडारण टैंक हैं एक में ईंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन और दूसरे में तरल ऑक्सीजन होता है जिसे ऑक्सीडाइजर कहते हैं. ये सब मिलकर प्रपोलेंट (Propellants) या नोदक कहते हैं. कोर चरण के आधार पर चार RS-25 इंजन लगे होते हैं जिनके जलने से निकलने वाली आग 16 हजार किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से बाहर निकल कर क्षेपण बल पैदा करता है जो रॉकेट को ऊपर की ओर धकेलेगा. बूस्टर हर सेकेंड में छह टन के ठोस नोदक जलाएंगे और पहले दो मिनट में क्षेपण बल में दो तिहाई का योगदान देंगे.
यदि हम स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) के क्षेपण बल (Thrust) के लिहाजसे देखें को यह रॉकेट अब तक सबसे शक्तिशाली रॉकेट होगा. प्रक्षेपण के समय ब्लाक 1 एसएलएस 39.1 मेगा न्यूटन का बल पैदा करेगा जो सैटर्न V से 15 प्रतिशत अधिक होगा. इससे पहले 1960 केदशक में ही सोवियत संघ ने N1 रॉकेट बनाया था जिसने 45.4 मेगा न्यूटन की शक्ति पैदा की थी, लेकिन चार परीक्षणों के बाद वह नाकाम हो गया था. वहीं एसएलएस की का भावी संस्करण ब्लॉक 2 कार्गो N1 के स्तर तक पहुंच सकता है. जबकि स्पेस एक्स (SpaceX) 66.7 मेगा न्यूट्न वाली स्टारशिप रॉकेट विकसित कर रहा है.
स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) का कोर स्पेस शटल (Space Shuttle) के फोम से ढंके हुए बाहरी टैंक (Outer Tank) पर आधारित है लेकिन डिजाइन के लिहाज से उससे थोड़ा अलग है. इसमें इसके अलगअलग घटक अलग अलग तरह के दबाव झेलते हैं. इसीलिए इसके हर एक हिस्से की बहुत गहनता से जांच की गई है जिससे यह कंपनों को झेल सके. वहीं स्पेस शटल के RS-25 इंजन सॉलिड रॉकेट बूस्टर (Solid Rocket Booster) से अलग अलग थे इसलिए उन्होंने ज्यादा कंपन झेलना होता है.
अमेरिका के पूर्व रॉष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने साल 2020 चंद्रमा (Moon) तक अमेरिकियों के वापस जाने की योजना बनाई थी. लेकिन फरवरी 2010में ओबामा प्रशासन ने इस योजना को रद्द कर दिया था. इससे अमरेकि के पांच दक्षिणी राज्यों में हजारों नौकरियां खत्म हो गई थी. इसका कुछ अमरिकी सांसदों ने यह कह कर विरोध किया था कि वे मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम को खत्म होता नहीं देख सकते जो क सालों से मजबूती से आगे बढ़ रहा था. यही से कई सांसदों ने एक विशाल रॉकेट (Rocket) के निर्माण की पैरवी की जो खारिज किए गए कॉन्स्टेशनल लॉन्चर की जगह ले सके. इसके बाद ही स्पेस लॉन्च सिस्टम (Space Launch System) का डिजाइन अगले साल ही सामने आ गया जो भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा कर सके. इस पर काम शुरू होने के बाद कहा जाने लगा कि इसके जितना क्षमतावान रॉकेट कई सालों तक दिखाई नहीं देगा.