पोंगल
दक्षिण भारत के तमिलनाडु और केरल राज्य में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के रुप में मनाया जाता है। पोंगल हिंदु धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक है, इस पर्व को खासतौर से तमिल हिंदुओं द्वारा काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह पर्व पारम्परिक रुप से 1000 वर्ष से अधिक समय से मनाया जा रहा है। यह त्योहार सामान्यतः चार दिनों तक चलता है। मुख्यतः यह पर्व फसल कटाई के उत्सव में मनाया जाता है। पोंगल विशेष रूप से किसानों का पर्व है। इस त्योहार को समपन्नता का प्रतीक माना जाता है और इसके अंतर्गत समृद्ध प्राप्ति के लिए धूप, वर्षा और मवेशियों की आराधना की जाती है। इस पर्व को विदेशों में रहने वाले प्रवासी तमिलों द्वारा भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।थाई पोंगल 2021 – 14 जनवरी, 2021 (गुरुवार) थाई पोंगल संक्रांति मुहूर्त: संक्रांति पल- 08:03:07
पोंगल किस राज्य का त्योहार है?
यह त्योहार मुख्यतः दक्षिण भारत में तमिलनाडु तथा पांडिचेरी जैसे राज्यों में मनाया जाता है, हालांकि देश भर के विभिन्न राज्यों में रहने वाले तमिलों तथा प्रवासी तमिलों द्वारा भी इस त्योहार को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
पोंगल क्यों मनाया जाता है?
यह पर्व थाई महीने के पहले दिन मनाया जाता है, यह महीना तमिल महीने का प्रथम दिन होता है। इस महीने के विषय में एक काफी प्रसिद्ध कहावत है भी है “थाई पोरंदा वाज़ी पोरकुकुम”, जिसका मतलब है थाई का यह महीना जीवन में एक नया परिवर्तन पैदा करता है। यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। यदि इस पर्व को समान्य रुप से देखा जाये, तो यह सर्दियों के फसलों के लिए, ईश्वर को दिये जाने वाले धन्यवाद के रुप में मनाया जाता है।
चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व में प्रकृति को विशेष धन्यवाद दिया जाता है। इसके साथ ही इस पर्व पर सूर्य देव को जो प्रसाद चढ़ाया जाता है उसे भी पोंगल व्यंजन के नाम से जाना जाता है और इसके साथ ही इसका एक दूसरा अर्थ ‘अच्छी तरह से उबालना’ भी है, यहीं कारण हैं कि इस व्यंजन को सूर्य के प्रकाश में आग पर अच्छे तरह से उबालकर बनाया जाता है।
पोंगल कैसे मनाते हैं?
यह विशेष त्योहार चार दिनों तक चलता है। जिसमें प्रकृति तथा विभिन्न देवी-देवताओं को अच्छी फसल तथा समपन्नता के लिए धन्यवाद दिया जाता है। यह चारो दिन एक-दूसरे से भिन्न हैं और इन चारों का अपना-अपना अलग महत्व है।
भोगी पोंगल
इसके प्रथम दिन को भोगी पोंगल के रुप में मनाया जाता है। इस दिन इंद्रदेव की पूजी की जाती है, वर्षा और अच्छी फसल के लिए लोग पहले दिन इंद्रदेव की पूजा करते हैं।
सूर्य पोंगल
इसके दूसरे दिन को सूर्य पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन नए बर्तनों में नए चावल, गुड़ व मुंग की दाल डालकर उसे केले के पत्ते पर रखकर गन्ना तथा अदरक आदि के साथ पूजा करते है और इसकी सहायता से एक विशेष व्यंजन बनाकर सूर्यदेव को उसका भोग लगाते हैं, इस विशेष प्रसाद को भी ‘पोंगल’ के नाम से ही जाना जाता है। सूर्य देव को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य के ही प्रकाश में बनाया जाता है।
मट्टू पोंगल
इसके तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन बैल की पूजा की जाती है। इस विषय को लेकर एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार शिव जी प्रमुख गणों में से एक नंदी से कुछ गलती हो गयी, इसके दंड में शिवजी ने उसे बैल बनकर पृथ्वी पर मनुष्यों की खेती करने में सहायता करने को कहा। इसलिए इस दिन मवेशियों की पूजा की जाती है और मनुष्यों के सहायता के लिए उनका धन्यवाद किया जाता है।
कन्या पोंगल
इसके चौथे दिन को कन्या पोंगल या कन्नम पोंगल के नाम से जाना जाता है। जिसे महिलाओं द्वारा काफी धूम-धाम से मानाया जाता है। इस दिन लोग मंदिरों, पर्यटन स्थलों या फिर अपने दोस्तों तथा रिश्तेदारों से भी मिलने जाते हैं। इस दिन पक्षियों की पूजा होती है। सांड़ व पक्षी युद्ध इस दिन उत्सव के प्रमुख आकर्षण होते हैं।