पल्लवी ने चार साल तक इस फिल्म के लिए रिसर्च किया और कई लोगों का इंटरव्यू लिया. पल्लवी ने ऐसे ही एक परिवार की वो दर्दनाक दास्तां सुनाई जो 1990 में कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म का शिकार हुआ था. पीड़ित परिवार की महिला ने अपने पिता के साथ हुई बर्बरता को बयां किया जो कि रूह कंपा देने वाली है.
डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने द कश्मीर फाइल्स फिल्म के जरिए 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ हुई बेरहमी को पर्दे पर उतारा है. इस फिल्म में पल्लवी जोशी ने राधिका मेनन का निगेटिव किरदार निभाया है. पल्लवी,रियल लाइफ में विवेक की पत्नी हैं और इस वजह से फिल्म बनाने के दौरान पहले दिन से वे इसका हिस्सा रहीं. बीते दिनों दिल्ली में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने फिल्म के लिए किए गए रिसर्च के वक्त के वो दर्दनाक किस्से सुनाए जो उन्होंने अपने कानों से सुने थे.
पल्लवी ने चार साल तक इस फिल्म के लिए रिसर्च किया और कई लोगों का इंटरव्यू लिया. पल्लवी ने ऐसे ही एक परिवार से बात की थी जो इस अत्याचार का शिकार हुए थे. पल्लवी कहती हैं- 'जब हम अपने पहले इंटरव्यू के लिए गए तो हमें पता था कि हम जिससे बात करने जा रहे हैं उसके पिता का मर्डर हुआ था पर ये नहीं पता था कि कैसे. जब हम वहां गए, उन्होंने खुशी से हमारा स्वागत किया.'
मारकर बोरी में भर दी थी लाश
'फिर उन्होंने हमें सब कुछ बताया, अपने खुशहाल बचपन से लेकर इस त्रासदी तक. अपने पिता के मौत की बात करते हुए उनकी बेटी ने बताया कि उसके पिता को मार कर 50 टुकड़ों में काट दिया गया था. फिर बोरे में भरकर फेंक दिया गया. 2-3 दिन बाद जब बोरी मिली, तो उन्होंने आईडी कार्ड के जरिए अपने पिता की बॉडी पहचानी.'
पोस्टमार्टम के बाद शरीर के अंग दिख रहे थे
आगे बात करते हुए पल्लवी ने बताया- 'एक अन्य इंटरव्यू में एक महिला ने बताया कि उनके पिता के पूरे शरीर में गोली मारी गई थी. और फिर पुलिस उसकी बॉडी ले गई, पोस्टमार्टम किया. जब बॉडी वापस की गई तो गोली के निशान हर जगह थे और पोस्टमार्टम की वजह से, सही से टांके नहीं लगे थे और शरीर के अंदरुनी अंग दिखाई दे रहे थे. वो महिला ये बताते हुए रो रही थी और कहा कि उस महिला को अपने पिता को उनके अंतिम संस्कार के लिए नहलाना पड़ा'.
जब इन दर्दनाक दास्तान को सुन कमजोर पड़ गईं पल्लवी
पल्लवी ने आगे कहा- 'हम हर रोज ऐसी 3-4 कहानियां सुनते थे. इनके आगे मैं कुछ कह ही नहीं पाती थी. मैं इंटरव्यूज जारी नहीं रख पाती थी और एक समय ऐसा भी था जब मैं पीछे हटने के लिए तैयार थी. मैं ये कहानियां नहीं सुन सकती थी पर कई परिवार उस नरसंहार की रूह कंपा देने वाली यादों के साथ अभी भी जी रहे थे, बिना किसी क्लोजर के क्योंकि आज तक किसी को भी सजा नहीं मिली.'