व्यंग्य: शब्दों की रिमिक्सिंग, डायलॉग की लस्सी... प्रेरणा का चपेड़, गुरु! यूं ही नहीं लगती 'लंका'

व्यंग्य: शब्दों की रिमिक्सिंग, डायलॉग की लस्सी... प्रेरणा का चपेड़, गुरु! यूं ही नहीं लगती 'लंका'

600 करोड़ के बजट में बनी फिल्म आदिपुरुष अपने डायलॉग्स को लेकर विवादों से घिर गयी. फिल्म में टपोरी भाषा में बात करते रावण और बाक़ी किरदारों ने दर्शकों को काफी निराश कर दिया. लेकिन ऐसे खतरनाक डायलॉग लिखने के लिए किस कदर प्रतिभा चाहिए? आइए ज़रा इस पर गंभीर चर्चा कर लेते हैं.. 

"कपड़ा तेरे बाप का! तेल तेरे बाप का! जलेगी भी तेरे बाप की"

"तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया"

"जो हमारी बहनों को हाथ लगाएंगे उनकी लंका लगा देंगे"

"आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं"

"मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है" 

ये हैं 600 करोड़ की फिल्म आदिपुरुष के डायलॉग. बता दूं ये डायलॉग कोई आम हीरो या विलेन नहीं बल्कि बजरंगबली, रावण जैसे पात्र बोल रहे हैं. ऐसे खतरू डायलॉगलिखने के लिए किस कदर प्रतिभा चाहिए... आइए ज़रा इस पर गंभीर चर्चा हो जाए.

आपके चरण कहां हैं मुंतशिर भइया!..

आज ही आपकी ऊपर वाली फिल्म देखी. इसमें आपके कुछ बेहद मासूम से रचनात्मक, स्तरहीन और सपाट डायलॉग को सुनकर मेरा कलेजा उत्साह से चरमराने लगा. आप कह सकते हैं कि झूमने वगैरह भी लगा. विकल होकर दिल झमिया सा हो गया. उत्साह से इसलिए भरा कि आपके इस प्रयास ने ही फिल्मों में स्टोरी राइटिंग या डायलॉग राइटर बनने का सपना देखने वाले हजारों लोगों को उत्प्रेरित कर दिया होगा. आपकी ज्वलन प्रेरणा भी उच्चस्तरीय खोजबीन का विषय है, क्योंकि साधारण प्रेरणा से इतने खूंखार लिख पाना संभव ही नहीं.

आपके डायलॉग सुनकर साफ समझ में आता है कि एक बार शुरुआत करने के बाद आपने निश्चित ही माउस या अंगूठा तोड़कर फेंक ही दिया होगा. संस्कृत के साथ टपोरीपने के के डायलॉग की रिमिक्सिंग में जितनी सजहता है, यदि आप खुद अपने लिखे को दोबारा पलटकर पढ़ लेते तो इस कदर विश्वस्तरीय डायलॉग संभव ही नहीं हो पाते. वैसे, इस दरम्यान दोनों भाषाओं के कॉकटेल से कई नए शब्द दुनिया को आपकी ओर से निजी तौर पर भी प्रदान किए गए हैं.

इस दौरान आपने भाषा के साथ भी आपने इस कदर खुलकर खेला है कि उई मां..! हाय दइया.! चोट्टा.! के अलावा किसी भांति दूसरे पक्ष के इमोशन व्यक्त नहीं किए जा सकते हैं. यह हुनर आजकल के बाकी लेखकों में कम ही देखने को मिलता है. डायलॉग को सुनकर साफ समझ में आता है कि यह पूरी तरह से मौलिक है, क्योंकि इस शैली में सरकार  किताबें लिखने वालों के अलावा नॉनवेज जोक्स, ट्रक के पीछे शायरी लिखने वाले उस्तादों को छोड़कर कोई माई का लाल लिख ही नहीं सकता है.

आपके डायलॉग सुनकर साफ लगता है कि आपने ठान ही लिया है कि राइटिंग में तो सिर्फ आप ही रहेंगे, आगे कोई डायलॉग लिखने वाला बचेगा ही नहीं. गुरु! बहुत ही   मेहनत से लिखे हैं आपने डायलॉग!! 

वैसे, कई भाषाओं से इतने वजनी शब्द उठाने के लिए काफी अध्ययन और श्रम भी लगता है. लगता है, आपने जोशोखरोश से वो लगाया भी है. कई बार तो आपका भाषा मिक्सचर कमाल का लगता है. ऐसा लगता है कि शब्द संस्कृत डिक्शनरी से सीधे चपेड़ मारते हुए यहां लाए गए हों. इसी तरह कई जगह तो आपने भारी मेहनत से भारी मात्रा में मेहनत से भारी मात्रा में क्लिष्ट हिन्दी लिखकर अपनी बात बुलवाने की कोशिश की है. यही बात आप देशकाल की चिंता किए बगैर अंग्रेजी में ही सुनवा देते तो ज्यादा आसानी से समझ में आ जाते. 

वैसे, कई जगह आपके डायलॉग में हास्य प्रसंग मिलते हैं जिनकी मार्मिकता दंग कर जाती है. मुश्किल हो जाती है कि रोएं या बाल नोचें. बाद में मोबाइल को सिर पर मारने से ही तसल्ली मिलती है. या इससे भी काम नहीं चले तो आगे बैठे दर्शक से लिपटकर रोने या कुर्सी से कूदकर सुसाइड करने जैसे वहशी आइडिए ही तसल्ली दे पाते पाते हैं.

यूंके आपका साहित्य भले ही दिमाग का दही कर दे. लेकिन जिस लगन से अपने शब्दों की जुगलबंदी करके लस्सी बनाई है, उस प्रतिभा पर हिंदी राइटर इस कदर भौचक्का है कि उसकी लंका लगी पड़ी है. 

वैसे सर एक गोपनीय बात और बताऊं,  मैं तो तत्काल कोटे से आपकी इतनी दुर्दांत प्रतिभा का फैन हो गया हूं. कल से रोज ऐसा लिखने की प्रैक्टिस भी शुरू करने वाला हूं. फिल्म मिले न मिले, कालजयी साहित्य रचने वालों में तो बिना वेटिंग लिस्ट के शामिल हो जाऊंगा. 

तो कहने को तो बहुत कुछ है, लेकिन 

भ्राता! फ़िलहाल के लिए  bid adieu...

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